Saturday 12 November 2011

FROM THE DESK OF THE EDITOR

डर (FEAR)
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डर बुनियादी तौर पर या सहज भावनाओं  का एक छोटा सा सेट में से एक है. यह सेट ख़ुशी, दुःख और क्रोध की तरह की भावनाओं में भी शामिल है, हर आदमी के जीवन में कोई डर जरूर होता है, वह बाहरी आवरण का डर हो या खुद के भीतर का, कुछ बुरा होने या कुछ खोने का डर हमेशा बना ही रहता है ।
डर दो तरह का होता है, एक तो भौतिक चीजें खो जाने का जो बाहर से दिखाई देती हैं और दूसरा भीतरी डर जो हमें हमेशा आशंकाओं से घेरे रहता है,  आंतरिक भय अपने आप में  एक नकारात्मक भावना  है, और ये आतंरिक डर बहुत खतरनाक चीज़ है ।

इसे हम इस प्रकार भी कह सकते हैं कि, 'पहला हम जो चाहते हैं वह मिल ही जाए, हमारा पूरा व्यक्तित्व चिंतित होता है कि यदि न मिला तो क्या होगा, इसे कहते हैं न मिलने का डर'..................!

दूसरा है भयभीत रहने का, जो हमारे पास है वो कहीं खो न जाए,  यह है प्राप्त अप्राप्त दोनों से ही भयभीत रहना...............!

विशेषज्ञ भी मानते हैं कि रिश्तों के जुड़ने और टूटने का सीधा संबंध दिल से ही होता है, भावनाएं हमारे दैनिक जीवन में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं. डर भी ऐसी एक  ही  भावना है जो हमारे मन में पूर्व से क्रमादेशित  है.............!

डर का कोई चेहरा नहीं होता, और दिल जब ऐसी किसी ही परिस्थिति से गुज़रता है तो उसका सीधा असर हमारे ऊपर पड़ता है, डर को जीतना ही फियर फैक्टरहै फिर वह डर चाहे बड़ा हो या छोटा.........!, 

डर से मन की बेचैनी स्वाभाविक क्रिया है,   और जब यही डर हमारे भविष्य को कंट्रोल करने लगे, तो यह खतरे की संभावना बन जाती  है,  पता है 'मिल्टन' ने क्या कहा डर की पराकास्ठा  पर, "जब कहीँ कोई उम्मीद नहीं बचती  है, तो कोई डर भी नहीं बचता  है." कहने का तात्पर्य यह है कि हम उमीद के सहारे ज़िन्दगी जीते हैं, अब अगर कोई उमीद ही नहीं रह्र्गी तो फिर ये डर किस लिए.........................................!

एक अहम् चीज और भी है,  कभी भी इस डर को अपने ऊपर हावी मत होने दो, गलती से भी यदि एक बार ये डर मन को अपने नियंत्रण में ले लेगा तो समझो खतरे की घंटी बज चुकी, फिर ये धीरे धीरे आपकी सारी बुद्धि हर लेगा, 'एंड ग्रेजुअली यू विल लैंड इन डिप्रेसन', और कोई भी व्यक्ति यदि डिप्रेसन में गया तो समझो उसकी पूरी कि पूरी ज़िन्दगी में नर्क  के सिवा कुछ नहीं बचता है ।

पर यदि हम अपने मन को नियंत्रित कर पायें तो हम डर के इस भ्रम  को दूर कर सकते हैं, इसके लिए आवश्यक है 'पोजिटिव  थिंकिंग'...........! और अपने मन को नियंत्रित करने का एक मात्र उपाय है ध्यान, योग, और प्राणायाम
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नोट:
मैं अपने अगले लेख में ध्यान, योग, और प्राणायाम के विषय में जानकारी देने का प्रयास करूंगा I  


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